ये जिंदगी आज जो तुम्हारे बदन की छोटी बड़ी नसों में मचल रही है
तुम्हारे पैरों से चल रही है ये जिंदगी
तुम्हारी आवाज में गले से निकल रही है
तुम्हारे लफ्जों में ढल रही है ये जिंदगी
जाने कितनी सदियों से यूँ शक्लें बदल रही है ये जिंदगी
बदलती शक्लों बदलते जिस्मों में चलता फिरता ये एक शरारा
जो इस घडी नाम है तुम्हारा
इसी से सारी चहल पहल है इसी से रोशन है हर नज़ारा
सितारे तोड़ो या घर बसाओ
अलम उठाओ या सर झुकाओ
तुम्हारी आँखों की रोशनी तक है खेल सारा
ये खेल होगा नहीं दुबारा
ये खेल होगा नहीं दुबारा
- निदा फ़ाज़ली
RajendraKishorJain
Wednesday, December 22, 2010
Wednesday, October 20, 2010
एक युग का अवसान
कर विदा , कर विदा
मुझको अब कर दो विदा
शायद जीने की नहीं थी
अब नयी कोई बजह
कर विदा अब कर विदा , बे बजह अब कर विदा
एक नदी निकली थी कल जो
पर्वतों की गोद से
जल था शीतल , तेज धार
खेलती आसमान से ,
मिल गयी सागर में देखो ,
पल में जो बहती यहाँ
कर विदा , अब कर विदा , इस नदी को कर विदा
मुझको अब कर दो विदा
शायद जीने की नहीं थी
अब नयी कोई बजह
कर विदा अब कर विदा , बे बजह अब कर विदा
एक नदी निकली थी कल जो
पर्वतों की गोद से
जल था शीतल , तेज धार
खेलती आसमान से ,
मिल गयी सागर में देखो ,
पल में जो बहती यहाँ
कर विदा , अब कर विदा , इस नदी को कर विदा
याद है मुझको अभी तक
गर्मियों की मीठी शाम
एक बाग़ ढेरों फूल
हवा में घुलता था आम
फूल खिलते छोड़कर
माली गया जाने किधर
कर विदा , अब कर विदा उस माली को कर विदा
Subscribe to:
Posts (Atom)